पूछो आज सवाल और मै जवाब दूँगी
जैसे हर बार देती आई हूँ
आज रेशम में लिपटे हुए नही
आज यू मुलायम फूलो की तरह नही
आज थोड़े सच के ज़हर में डूबे
आज थोड़े कडवे कसेले से
आज शायद पसंद नही आयेंगे मेरे जवाब
आज शायद तुम तारीफ़ नही करोगे मेरे शब्दों की
आज नही भाएगी मेरी मुस्कान
आज नही कहोगे 'दोहराहो फिर से '
आज यू फक्र से महफ़िल में मेरा और अपना हमारा कहकर नही बताओगे
आज तो एक अनजान की तरह
फेरोगे मुझसे नज़र
और यू लौटते हुए घर
शायद कह भी दो
तुम बदल गयी हो
और मै कह दूँगी
आज मै नही बदली
बदले है बस जवाब, बस थोड़ी सच की जूठन से
संगीता जी,
ReplyDeleteलाजवाब पोस्ट है आपकी....सही है सच जब बिना लाग-लपेट के बोला जाता है तो वो बहुत कड़वा और कसेला जाता है.....जिसे सुनने की सामर्थ्य सबमे कहाँ....
मुझे लगा 'यु' की जगह 'यूँ' होना चाहिए था|
इमरान जी आपका बहुत धन्यवाद ! लिखना तब सार्थक होता है जब आपके अलावा और लोग भी उसका मूल्यांकन करते है
ReplyDelete