
आज रौशनी से कह देना
की थोड़ी धीमी आँच में सिक कर आये,
जम चुके है मेरे एहसास बर्फ से
और आँखे ढूंढ रही है उस तपिश को,
कब का बंद हो चुका है वह सुराख़
जहाँ से टटोलती थी एक जोड़ीदार आंखे,
मेरी साँसों की हलचल को ,
उन आँखों से इतना कह देना
नए सुराख़ का कोई तो इंतजाम कर लें
बुलाया तो आज भी है
किसी ने जश्न में अपने
बस थोड़ी सी उलझन है
आज रंगत नही उस लिफाफे में पहली जैसे
और नाम मेरा जैसे जल्दबाजी में लिखा है
मिले वह लोग तो इतना कह देना
न बुलाओगे तो भी इससे बेहतर होगा
मुझे अब भीड़ से डर लगने लगा है
की थोड़ी धीमी आँच में सिक कर आये,
जम चुके है मेरे एहसास बर्फ से
और आँखे ढूंढ रही है उस तपिश को,
कब का बंद हो चुका है वह सुराख़
जहाँ से टटोलती थी एक जोड़ीदार आंखे,
मेरी साँसों की हलचल को ,
उन आँखों से इतना कह देना
नए सुराख़ का कोई तो इंतजाम कर लें
बुलाया तो आज भी है
किसी ने जश्न में अपने
बस थोड़ी सी उलझन है
आज रंगत नही उस लिफाफे में पहली जैसे
और नाम मेरा जैसे जल्दबाजी में लिखा है
मिले वह लोग तो इतना कह देना
न बुलाओगे तो भी इससे बेहतर होगा
मुझे अब भीड़ से डर लगने लगा है