मुझे रहने दो गुमनामी में
ये अँधेरे कभी उस उजाले से ज्यादा भाते है
जो उजाले साथ में लाते है शर्त , जागते रहने की....
मुझे खफा रहने दो
मनाने के झूठे बहानो से
ये टूटती उम्मीदों के सिलसिलो को बढ़ाते है....
किसको फ़िक्र है यहाँ जश्न की
हम तो हर नाकामयाबी में समझा लेते है
कुछ तो है जो सिर्फ अपना है
जिसे बाटना नही पड़ता,,,,,,
बदल रही है आरजू वक़्त के साथ
कभी जिद थी मुस्कुराने की
और आज जिद है महज़ जीने की .....