Saturday, January 15, 2011

कह देना


आज रौशनी से कह देना
की थोड़ी धीमी आँच में सिक कर आये,
जम चुके है मेरे एहसास बर्फ से
और आँखे ढूंढ रही है उस तपिश को,

कब का बंद हो चुका है वह सुराख़
जहाँ से टटोलती थी एक जोड़ीदार आंखे,
मेरी साँसों की हलचल को ,
उन आँखों से इतना कह देना
नए सुराख़ का कोई तो इंतजाम कर लें

बुलाया तो आज भी है
किसी ने जश्न में अपने
बस थोड़ी सी उलझन है
आज रंगत नही उस लिफाफे में पहली जैसे
और नाम मेरा जैसे जल्दबाजी में लिखा है

मिले वह लोग तो इतना कह देना
न बुलाओगे तो भी इससे बेहतर होगा
मुझे अब भीड़ से डर लगने लगा है

3 comments:

  1. संगीता जी,

    आपकी पोस्ट में जज़्बात सच्चे होते हैं, अल्फाजों की अच्छी समझ है आपको.....बहुत पसंद आई ये नज़्म.....पर बहुत गलतियाँ हैं सबको बताना संभव नहीं था....इसलिए मैंने फिर से पूरी तरह से बदलने की कोशिश की है....उम्मीद है आप अन्यथा नहीं लेंगी......एक बार इसे और एक बार वो जो आपने पोस्ट किया है ....बारीकी से पढ़िए....आपको खुद पता चल जायेगा की कहाँ क्या गलती हुई थी.......उम्मीद है आगे आप और अच्छा लिखेंगी.....मेरी शुभकामनायें|

    आज रौशनी से कह देना
    की थोड़ी धीमी आँच में सिक कर आये,
    जम चुके है मेरे एहसास बर्फ से
    और आँखे ढूंढ रही है उस तपिश को,

    कब का बंद हो चुका है वह सुराख़
    जहाँ से टटोलती थी एक जोड़ीदार आंखे,
    मेरी साँसों की हलचल को ,
    उन आँखों से इतना कह देना
    नए सुराख़ का कोई तो इंतजाम कर लें

    बुलाया तो आज भी है
    किसी ने जश्न में अपने
    बस थोड़ी सी उलझन है
    आज रंगत नही उस लिफाफे में पहली जैसे
    और नाम मेरा जैसे जल्दबाजी में लिखा है

    मिले वह लोग तो इतना कह देना
    न बुलाओगे तो भी इससे बेहतर होगा
    मुझे अब भीड़ से डर लगने लगा है,

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  2. I love this post very much ...
    specially :

    बुलाया तो आज भी है
    किसी ने जश्न में अपने
    बस थोड़ी सी उलझन है
    आज रंगत नही उस लिफाफे में पहली जैसे
    और नाम मेरा जैसे जल्दबाजी में लिखा है

    मिले वह लोग तो इतना कह देना
    न बुलाओगे तो भी इससे बेहतर होगा
    मुझे अब भीड़ से डर लगने लगा है ...

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  3. brilliant, thats magic using the simplest of words.

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