Saturday, November 6, 2010

यू तो


यू तो रास्ता अकेले ही तय करना है
फिर किस रहगुज़र को तलाशती रहती है आंखे
यहाँ तो उस गली से गुज़रना है जहा अपना साया भी सोचता है
साथ देने से पहले
फिर किस आरजू में मुड मुड कर देखती हु
और सोचती हु कोई आवाज़ देगा और कहेगा
अकेले कैसे जाने दू इन सुनसान सी गलियों में
और यू बस बिना कुछ सुने चल दे मेरे साथ
बिन बातो के ही यू ही कट जाये सफ़र
और फिर लगे न जाने कितने बातो को कर चुके हम
और सफ़र लम्बा भी हो तो फिर भी कोई शिकवा न हो
न उससे न खुद से और ना ही मंजिल से
मालूम है मुझे
यू तो रास्ता अकेले ही तय करना है
फिर क्यूँ कदम थम से जाते है जब सुनाई देने लगती है कुछ अनसुनी आहटे

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