Monday, October 25, 2010

मेरी मौजूदगी


मेरी मौजूदगी यू मेरे अपनों के बीच न ढूढ़
मेरा फ़साना तो अनजान रास्तो में बिखरा पड़ा है
किस किताब को पलटते हो मेरा ज़िक्र लिखा हो जिसमे
मेरा एहसास कुछ पन्नो में कहा सिमट पाया है
मै कोई अनमोल ख्वाब नही जो आँखों में बसा करू
कीमत मेरे वजूद की अभी इतनी भी नही
पर जिस की आँखों में बसेगी ये हकीक़त
उसकी कीमत का कोई हिसाब कहा लगा पाया है
मै ज़माने के खूबसूरत दस्तूर नही
मै तो नाकामयाब से एक वक़्त का हिस्सा हु
मशहूर होने के तेवर नही मुझमे
बस इतनी सी शिकायत है मुझे
मेरे एहसासों को तराजू मै कम मत तौलो
इनके वजन को देखा है बस तुमने
इनकी गहराई को आज तक मापा कहा गया है

Tuesday, October 12, 2010

सितारों के बीच


समेट लेती वह बूंद भी उसे
गर उसमे थोड़ी भी गुंजाइश होती बंध जाने की
यू ही वह बिखरी बिखरी सी न रहती
गर उसमे थोड़ी भी हसरत होती
थोड़ी सी भी बस सिमट जाने की
वह अलग थी सबसे या
उसकी दीवानगी को समझने की जरुरत नही समझी ज़माने ने
उससे पूछा जाता उसका ठिकाना
क्या बताती वह
जो हर बार हवा के साथ रुख बदलती थी अपना
वह तलाशती थी अपना वजूद सितारों के बीच आसमा में
और हम उससे कहते रहते थे
क्यूँ नही ढूढ़ पाती वह खुद को किसी भी ज़मी के आशियाने में